चकिया, चंदौली। रविवार को सावित्री बाई फुले राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन समारोह किया गया। इस समापन समारोह की मुख्य वक्ता के रूप में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर रंजनाशील रही।
जिन्होंने अपने वक्तव्य में कहा है कि वर्तमान संदर्भ में राष्ट और राष्ट्वाद को नए दंग से परिभाषित करने के साथ साथ धर्म को समझने और जोड़ने जैसे रचनात्मक कार्य की आवश्यकता पर जोर देने की बात कही। विशिष्ट अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के इतिहास विभाग के प्रोफेसर मालविका रंजन ने अपने वक्तव्य में कहा कि सुदूर मौखिक इतिहासलेखन की आवश्यकता पर बल देने की आवश्यकता है। जिसमें स्मृतियों एवम् कहानियों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर ताबीर कलाम ने अपने उद्बोधन में कहा कि विभाजन जैसी अमानवीय कृत्य को साहित्य के माध्यम से लोगो के भावना को जागृत करने का कार्य करती है। साहित्य में वर्णित संवाद से तत्कालीन सांस्कृतिक विरासत के दर्द को बेहतर दंग से रेखांकित की है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर संगीता सिन्हा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि अतिथियों के द्वारा प्रस्तुत व्याख्यान से विद्यार्थी, शोधार्थी और बाहर से आए सभी आगंतुक अमृत काल में विभाजन के पुनर्विचार जैसे विषय पर प्रस्तुत व्याख्यान जरूर लाभान्वित हुए होंगे। इस दौरान तकनीक सत्र और समानांतर सत्र में डा. सत्यपाल, डा. सुतापा दास, डा. गगनप्रीत, डॉक्टर निर्मल पांडेय, डा. अजीत कुमार राय, डॉक्टर शिव नारायण आदि विद्यमान रहे।
कार्यक्रम का स्वागत आयोजक डा.संतोष कुमार यादव, धन्यवाद ज्ञापन रामाकांत गौड़, रिर्पोटिंग डा. शमशेर बहादुर ने किया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ प्राध्यापक डा. सरवन कुमार यादव, डा. कलावती, संतोष कुमार, डा.मिथिलेश कुमार सिंह, डा. अमिता सिंह, डा. सुरेन्द्र कुमार सिंह एवम् विश्व प्रकाश शुक्ल सहित डा. देवेन्द्र बहादुर सिंह, विपिन शर्मा, श्याम जन्म सोनकर आदि कर्मचारी व समस्त छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।