Sunday, April 28, 2024
उत्तर-प्रदेशगोरखपुर

बेबस मां को 150 किमी दौड़ाया, पर नवजात को उपचार न मिल पाया; यूपी के एक नहीं कई अस्पतालों ने दिखाई पत्थर दिली

गोरखपुर। उम्र 34 दिन। बिटिया के चेहरे के घाव ऐसे कि देखकर कोई भी कांप जाए। फिर उस मां का हाल सोचिए, जो बिल्ली के हमले में घायल मासूम को कलेजे से लगा अस्पताल-अस्पताल भटकी। रो-रोकर मिन्नतें कीं, मगर डाक्टरों ने उपचार के नाम पर 150 किलोमीटर दौड़ाया।

इस दौड़-भाग ने बेबस मां संग निर्धन नाना का कलेजा छलनी कर दिया, लेकिन मासूम को उपचार नहीं मिल पाया। बस्ती जिला अस्पताल, कैली मेडिकल कालेज, गोरखपुर जिला अस्पताल, बीआरडी मेडिकल कालेज और एम्स जैसे अस्पतालों का चक्कर काट अब ये 24 घंटे बाद डुमरियागंज के देवा चौराहा स्थित उसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंच चुके हैं, जहां से पहली बार मासूम रेफर हुई थी।

डुमरियागंज के मोहर्रम अली ने बेटी नगमा की शादी यहीं के भरवटिया निवासी चालक बरकत अली से की है। बेटी के जन्म के बाद वह मायके में रह रही थी। 31 जनवरी की सुबह नगमा बच्ची को कमरे में छोड़कर किसी काम से निकली। अचानक बच्ची के रोने की आवाज आई तो नगमा भागकर कमरे में पहुंची। देखा कि बिल्ली बच्ची का चेहरा नोच रही थी।

बच्ची को बचा वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंची। यहां डाक्टरों ने बस्ती जिला अस्पताल जाने को कहा। वहां डाक्टरों ने कैली अस्पताल जाने को कहा। कैली के डाक्टरों ने बाबा राघवदास मेडिकल कालेज रेफर दिया। मोहर्रम अली नातिन और बेटी को लेकर मेडिकल कालेज पहुंचे तो इमरजेंसी के बाहर से ही डाक्टरों ने एंटी रैबीज इंजेक्शन नहीं लगने की जानकारी देकर जिला अस्पताल ले जाने को कहा।

जिला अस्पताल गोरखपुर पहुंचे तो बाहर से ही डाक्टरों ने कहा कि शाम को कुछ नहीं होने वाला अब सुबह आना। मोहर्रम अली गिड़गिड़ाने लगे तो एक एंबुलेंस चालक को तरस आया और उसने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर पहुंचाया।

जब एम्स ने किया भर्ती…

एम्स की इमरजेंसी में डाक्टरों ने रात में बच्ची को भर्ती किया, लेकिन इम्युनोग्लोब्यूलिन इंजेक्शन और एंटी रैबीज इंजेक्शन न होने के साथ ही इमरजेंसी आपरेशन थियेटर न होने के व प्लास्टिक सर्जरी विभाग की जरूरत होने की बात लिखते हुए फिर रेफर कर दिया।

मोहर्रम अली के बताने के बाद भी एंबुलेंस से फिर उसे मेडिकल कालेज पहुंचा दिया गया। यहां डाक्टरों ने दोबारा उसे देखते हुए फटकार लगाते हुए भगा दिया। मोहर्रम अली ने रुपये देकर वाहन की व्यवस्था की और रात दो बजे सभी को लेकर गांव चले गए।

इतना पैसा भी नहीं है कि निजी अस्पताल ले जाऊं

पेशे से टेंपो चालक मोहर्रम अली ने कहा कि एम्स में डाक्टरों ने जो दवा लिखी है वह दे रहे हैं, लेकिन नातिन को दर्द से राहत नहीं मिल रही है, वह रो रही है। उसे देखकर मेरी बेटी भी रो रही है। इतना पैसा भी नहीं है कि निजी अस्पताल ले जाऊं। यदि डाक्टरों को इंजेक्शन लगवाना था तो मुझसे कह देते, मैं उधार मांगकर ले आता, लेकिन बिना कोई सलाह दिए कह दिया कि हायर सेंटर ले जाओ।

प्लास्टिक सर्जन तैनात, पर नहीं मिला है ओटी

एम्स गोरखपुर में प्लास्टिक सर्जन की तैनाती है। ट्रामा एंड इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में प्लास्टिक सर्जरी की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. कोन्डा श्रीशा ने कार्यभार ग्रहण किया है, लेकिन उनके पास काम नहीं है। उन्हें न तो आपरेशन थियेटर आवंटित किया गया है और न ही ओपीडी कक्ष। ऐसा न होने से रोगियों का उपचार नहीं हो पा रहा है।

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