Thursday, May 9, 2024
उत्तर-प्रदेशवाराणसी

200 वर्ष पूरे होने पर आयोजित हुआ……गंगा जमुनी तहजीब को मजबूत करने में उर्दू भाषा का है अहम योगदान :कुलपति प्रो. सैयद…….हिंदी की ही तरह उर्दू है पूरे हिंदुस्तान मुल्क की ज़बान : पूर्व डीजीपी

उर्दू पत्रकारिता कर रहा है देश की आजादी में अमूल्य योगदान:प्रो निरंजन सहाय
वाराणासी। पूर्वाचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
आज यानि शुक्रवार को उर्दू पत्रकारिता के 200 वर्ष पूरे होने पर शुक्रवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के  केंद्रीय पुस्कालय के समिति कक्ष में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान, हिंदी और आधुनिक भाषा विभाग और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिट, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में “उर्दू मीडिया : अतीत, वर्तमान और भविष्य” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। आयोजन का शुभारंभ महात्मा गांधी और बाबू शिव प्रसाद गुप्त के चित्रों पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
                       कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति  प्रो. सैयद एनुल हसन ने नजीर बनारसी के शेर से अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि आज़ादी के पहले हिन्दी और उर्दू पत्रकारिता ने मिलकर जिस मजबूती के साथ देश के दुश्मनों से लोहा लिया उसको जानना और पढ़ना आज के समय में गंगा जमुनी तहजीब को मजबूत करने के लिए बेहद जरूरी है।उन्होंने भाषा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मैं भले ही देश दुनिया के कितने मुल्कों में घुमा हूं लेकिन मेरा दिल आज भी बनारसी ही है और भोजपुरी मेरी सबसे पसंदीदा भाषाओं में से एक है। उन्होंने कहा कि बनारस एक ऐसी जगह है जिसने हिंदी के साथ-साथ उर्दू भाषा के उत्थान में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि छत्तीसगढ़ के पूर्व पुलिस महानिदेशक व मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के पूर्व सचिव एम. डब्लू. अंसारी ने उर्दू पत्रकारिता की शुरुआत और वर्तमान के बीच मुंशी प्रेम चंद के सोजे वतन और गंगा जमुनी तहजीब को याद किया। उन्होंने कहा कि उर्दू किसी एक जाती, धर्म या समुदाय की नहीं बल्कि यह पूरे हिंदुस्तान मुल्क की जबान है।
इसी क्रम में काशी विद्यापीठ के अध्यापक रहे प्रो. अज़ीज हैदर ने काशी विद्यापीठ में हिंदी और उर्दू की पढ़ाई और बनारस से उर्दू शहाफत में नए आयाम की बात की। इंकलाब के रिजेंट एडिटर अफजल साहब ने हिंदी बांग्ला और उर्दू पत्रकारिता के स्थानों का करार देते हुए कहा कि आज भी भारत में उर्दू के अखबारों का तीसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि उर्दू सीखने को वजह से हिंदी की जबान सुधर जायेगी।
मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि उर्दू पत्रकारिता हिंदी पत्रकारिता की बड़ी बहन है। उन्होंने नवीन शताब्दी तक उर्दू पत्रकारिता के विकास के संदर्भ में बताते हुए कहा कि एक समय ऐसा भी आया था जब अपने मजबूत लेखनी को वजह से पयाम ए आजादी के नौ संपादकों को जेल हुई थी। उन्होंने कहा कि भारत के विभाजन के दौरान भारत में 451 उर्दू पत्र प्रकाशित होते थे।
 हिन्दी और आधुनिक भाषा विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विभागाध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने कलाम ए निस्वा की कुछ पंक्तियां पढ़ीं। उन्होंने सृजन और अभिव्यक्ति को गहरे अंदाज में ढालने का प्रयास किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए काशी विद्यापीठ के  कुलपति प्रतिनिधि प्रो. अशोक मिश्रा ने सभी भाषाओं और उनकी पत्रकारिता को एक ढंग में प्रस्तुत करने की बात कही। उन्होंने कहा की कोई भी भाषा कठिन नहीं होती हैं हमें किसी भाषा को किसी एक समुदाय की भाषा नहीं समझना चाहिए। 
कार्यक्रम का संचालन मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद फरियाद ने किया। स्वागत भाषण महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नागेंद्र सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के वाराणसी सेंटर के असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर डॉ शमसुद्दीन ने किया। 
कार्यक्रम में इसी क्रम में वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार व उर्दू के जानकार ए.के. लारी, वरिष्ठ पत्रकार अजय राय ,डॉ श्रीराम त्रिपाठी, शैलेश चौरसिया, डॉ देवाशीष वर्मा, डॉक्टर जिनेश, पत्रकारिता संस्थान के शोध छात्र मोहम्मद जावेद सहित हिन्दी विभाग के छात्र शिव शंकर यादव ,मनीष, संगीता , उमा  समेत हिन्दी पत्रकारिता संस्थान के विद्यार्थी सूरज, मंगलम, प्रोनोतो, सौम्या, जया, वर्तिका मोनिशा, रौशन, राहुल, रेशमा, सृष्टि, अबीर, अभिषेक आदि मौजूद रहे।

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