हैरत में डाल देगी आइआइटी विज्ञानियों की ताजा रिपोर्ट, अब गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर किया यह दावा…..
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
कानपुर। हम मैदानी इलाकों में पयार पराली लकड़ी, पत्ती और टायर जला रहे हैैं लेकिन प्रभावित ग्लेशियर हो रहे हैैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आइआइटी के पांच विज्ञानियों ने तीन वर्ष 2018 से 2021 तक किए गए अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि वाहनों से ज्यादा ये प्रदूषण बढ़ा रहे हैैं। हर साल 33.5 गीगा टन बर्फ पिघल रही है और 30 मीटर तक ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैैं। जानकर हैरानी होगी कि वर्षों पहले वहां जब गंगाजी का मंदिर बना तो गंगोत्री ग्लेशियर मंदिर के ठीक सामने स्थित था। लेकिन अब करीब दो किमी ऊपर जा चुका है। उनका यह शोधपत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल यूरोपियन एसोसिएशन आफ जियोकेमेस्ट्री और इन्वायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलाजी में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने केंद्र सरकार को भी रिपोर्ट और सुझाव भेजे हैैं।
आइआइटी के अर्थ साइंस विभाग के विज्ञानियों प्रो. इंद्रशेखर सेन, डा. तनुज शुक्ला, डा. सरवर निजाम, डा. अरिजीत मित्रा व डा. सौमित्र बोरल की टीम ने तीन वर्षों तक गंगोत्री उत्तराखंड व छोटा सिगरी हिमाचल प्रदेश ग्लेशियर के पिघलने के कारणों की जानकारी जुटाई। अध्ययन के बाद पता लगा है कि प्रदूषण के कारण ग्लेशियर हर वर्ष 30 मीटर तक सिकुड़ रहा है। प्रतिवर्ष 33.5 गीगा टन बर्फ पिघलकर नदियों में आ रही है। प्रो. इंद्रशेखर सेन ने बताया कि गंगोत्री में जब मंदिर बना था तो वह ग्लेशियर के ठीक सामने था लेकिन आज ग्लेशियर दो किमी. दूर जा चुका है।