Saturday, April 20, 2024
उत्तर-प्रदेशगोरखपुर

इतराओ मत, हम भी करते हैं मुर्दों का इलाज…….

पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क

गोरखपुर। डाक्टर साहब का अस्पताल भले बंद हो गया। लेकिन मुर्दों के उपचार के लिए वह मशहूर हो गए। लोग उन्हें ढूंढ रहे हैं कि मिल जाते तो पिताजी की आखिरी इच्छा जान लेते। अपनी शांति काकी तो इसी में परेशान रही कि मरते वक्त सास ने गहनों की पोटली कहां छिपा दी। डाक्टर साहब 10 मिनट के लिए ही सास को जिंदा कर देते तो काम बन जाता। अपने सरकारी अस्पताल वाले डाक्टर साहब को इससे बहुत जलन थी। दूसरे की उपलब्धि देखी न जा रही थी। पखवारे भर पूर्व सरकारी अस्पताल में पुलिस वाले एक डेड बाडी लेकर पहुंच गए। डाक्टर साहब ने उसे छूते ब्राट डेड पर्चे पर लिख दिया। बाद में 25 मिनट तक मुर्दे का इलाज किया। डाक्टर साहब को पता ही नहीं था कि मामला इतना महंगा पड़ेगा। तीन बार कानपुर वाले साहब बुला चुके हैं। पूछ रहे हैं. डाक्टर साहब यह चमत्कार कैसे हुआ।

एक तो कट्टा लाएं दूजे पता भी बताएं

अपने चंदू चाचा पुलिस की नौकरी से ऊब चुके हैं। दो दिन पहले ही मुलाकात हुई तो बोले ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन जहर खाना पड़ेगा। जोन वाले साहब कहते हैं कि आपरेशन तमंचा चलाओ और मंडल वाले कहते हैं कि असलहे का पता बताओ। मैंने चाचा से कहाए बता क्यों नहीं देते। चाचा ने कहा कि पता बताउंगा तो अगले ही दिन जेल में नजर आऊंगा। चार.चार हजार रुपये का एक.एक कट्टा खरीदता हूं। कट्टा लगाने पर ही बदमाश को सजा मिलती है। कच्ची दारू भी मुफ्त में नहीं मिलती है। किसी का कच्ची के साथ चालान करना होता है तो पहले दारू खरीदनी पड़ती है। उसके बाद चालान करना पड़ता है। अब ऐसे में कट्टे का पता कहां से बताऊं जब खरीददार मैं ही हूं। बिना असलहे के बदमाश पकड़ूं तो जिले वाले साहब नाराज। समस्या यह है कि नौकरी करूं या जेल जाऊं।

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