यहां चल रहा अनोखा मुकदमा, वादी न प्रतिवादी, 62 वर्षों से केवल तारीख पर तारीख…….
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
बक्सर। अब न वादी है न प्रतिवादी। वह सिनेमा हॉल भी नहीं जिसको लेकर मुकदमा चला। लेकिन 62 साल बाद भी तारीख पर तारीख पड़ रही है। बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडलीय कोर्ट का यह मामला चर्चा में है। इसके पैरवीकारों ने 20 वर्ष तक तो मुकदमे को खींचा फिर अदालत आना.जाना छोड़ दिया। बक्सर अनुमंडलीय न्यायालय के एक अधिवक्ता बताते हैं कि साल 1959 में ही इस मामले में हाइकोर्ट से स्थगनादेश के कारण निचली अदालत सुनवाई बंद भी नहीं कर सकती है।
कोर्ट ने दिया यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश
यह मुकदमा उस समय का है जब वर्तमान भोजपुर, बक्सर, भभुआ और रोहतास को मिलाकर एक जिला हुआ करता था शाहाबाद। उस जमाने में पूरे बक्सर जिले में इकलौता सिनेमा हॉल हुआ करता था। जिसका नाम था तुलसी टॉकीज। इसके मालिक थे बद्री प्रसाद जायसवाल। वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। बम्बई अब मुंबई की फिल्म वितरक कंपनी गाउमंट काली प्राइवेट लिमिटेड के साथ लेनदेन को लेकर कुछ विवाद हुआ। कंपनी ने बाम्बे हाईकोर्ट की शरण ली। 24 नवंबर 1958 को न्यायाधीश न्यायमूर्ति केटी देसाई ने तुलसी टॉकीज में लगा कंपनी का प्रोजेक्टर और लाइट आदि लौटाने का आदेश दिया। 60 हजार रुपये भी दिए जाने थे। इसका अनुपालन कराने के लिए कंपनी के वकील आदेश लेने को शाहाबाद की स्थानीय अदालत पहुंचे। इस पर सिनेमा हॉल के मालिक ने मोहलत देने की मांग करते हुए उनका पक्ष भी सुने जाने का आग्रह किया। कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश दिया।
अब बक्सर के सब जज. 2 की अदालत में है मामला
इस बीच बद्री प्रसाद ने पटना हाईकोर्ट में अपील कर कहा कि उनका पक्ष नहीं सुना गया था। जिस पर स्थगनादेश निर्गत कर दिया गया। फिर यह मामला आरा कोर्ट में चलने लगा। बक्सर जिला बना तो वहां स्थानांतरित हो गया। कुछ साल पहले डुमरांव में अनुमंडलीय दीवानी न्यायालय बनने के बाद मुकदमा वहां की अदालत में चला गया। बीते 26 जुलाई को इसकी तारीख पड़ी थी। इस समय यह मुकदमा सब जज. 2 की अदालत में न्यायाधीश शाहयार मोहम्मद अफजल के अधीन है।