सोशल मीडिया पर मांगी मदद, पुलिस के जवान ने खून देकर बचाई महिला की जान…..
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
गोरखपुर। गोरखपुर पुलिस के एक जवान ने मानवता की मिसाल पेश की। एक निजी अस्पताल में एक महिला का आपरेशन चल रहा था। अचानक उसे ब्लड की जरूरत पड़ गई। परेशान पति ने फेसबुक पर पोस्ट डालकर मदद मांगी। पीआरवी के जवान की नजर पोस्ट पर पड़ी तो अपने से अनुमति ब्लड देने अस्पताल पहुंच गया। समय से ब्लड मिलने पर महिला की जान बच गई। जवान की हर ओर तारीफ हो रही है।
बिहार की रहने वाली है महिला
बिहार के रहने वाले रतन कुमार की पत्नी का डाक्टर अभिजीत सरकारी के वहां शुक्रवार की रात आपरेशन चल रहा था। इस बीच डॉक्टर ने रतन से तत्काल ब्लड का इंतेजाम करने को कह दिया। गोरखपुर में उनका कोई परिचित नहीं था। ऐसे में वह काफी परेशान हो गए। इसके बाद उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर लोगों से ब्लड के लिए मदद की गुहार लगाई।
वक्त रहते ब्लड मिलने से बची जान
कुछ ही देर में लोगों ने पोस्ट को शेयर करना शुरू कर दिया और इस बीच गोरखपुर डायल 112 पीआरपी 3882 के कांस्टेलब शिवाम्बुज कुमार पटेल की नजर पोस्ट पर पड़ी। शिवाम्बुज ने तत्काल इसकी सूचना कंट्रोल रूम को दी और बिना देर किए ब्लड देने पहुंच गए। गंभीर हाल में महिला को वक्त रहते ब्लड चढ़ने लगा और उसकी जान बच गई। महिला के पति रतन कुमार और उनके परिवार के लोगों ने मदद करने वाले कांस्टेबल शिवाम्बुज कुमार पटेल के प्रति आभार व्यक्त किया। पीआरवी जवान की सोशल मीडिया पर जमकर तारीफ हो रही है।
कोरोना योद्धाः ठान लिया कोरोना से युद्ध, संक्रमित भी हुए लेकिन नहीं हारी हिम्मत
कोरोना से जंग जारी है। डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ अस्पतालों में इस महामारी से लड़ रहे हैं। बाबा राघव दास बीआरडी मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग के अध्यक्ष डा. अमरेश सिंह रोज कोरोना से दो.दो हाथ करते हैं। विभाग में प्रतिदिन लगभग तीन हजार नमूनों की जांच होती है। उनके साथ पूरा स्टाफ कोरोना से जंग लड़ रहा है। पूरी सतर्कता के बावजूद डा. अमरेश इस लड़ाई में इस माह संक्रमित हो गए थे। लेकिन ठीक होने के बाद पुनः जंग में कूद पड़े हैं।
डाण् सिंह बताते हैं कि पिछले लगभग एक साल से माइक्रोबायोलाजी विभाग में कोरोना के नमूनों की जांच हो रही है। शुरुआत 50.60 नमूनों से हुई थी। यह संख्या अब ढाई.तीन हजार तक पहुंच चुकी है। पूरी सतर्कता व बचाव के साथ नमूनों को खोला जाता है। उन्हें मशीन में डाला जाता है। काम काफी चुनौतीपूर्ण है। क्योंकि संक्रमण सीधे हमारे सामने होता है।
इसलिए पूरी एहतियात बरती जाती है। बावजूद इसके एक मई को संक्रमण मुझ तक पहुंच गया। 11 मई को रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद मैंने पुनः अपना कार्य संभाल लिया है। मेरे साथ मेरा पूरा स्टाफ इस महामारी से जंग लड़ रहा है। इस संकट के समय में यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है।