Friday, April 26, 2024
उत्तर-प्रदेशलखनऊ

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बड़ा ग्लेशियर पिघला तो सच में आ सकता है प्रलय…..

पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क

देरहादून। परम पुरुष स्वयं में अकर्ता होकर अपनी योगमाया यानी प्रकृति के माध्यम से इस विराट एवं पूर्णतया विज्ञान सम्मत सृष्टि का सृजन और संचालन करता है। इसमें स्वतः स्फूर्त एक संतुलन है। जिससे अतिशय छेड़छाड़ भयंकर परिणामों का वाहक बनती है। संप्रति विकास के नाम पर प्रकृति के विकृतीकरण की अति है। माना कि हम आदिम युग की ओर नहीं लौट सकते, किंतु वन, पर्वत, समुद्र और आकाश को विद्रूप करने की आज संसार में होड़ लगी हुई है। यह तो आपत्तिजनक है ही। बात पर्वतों और अपने देश की, जहां हिमालय पर चमोली जिले में ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना पर ग्लेशियर टूट गया है और भारी त्रसदी हो गई है।

मनीषी पूर्वजों ने इन्हें भूधर, धरणीधर आदि नामों से पुकारा, यानी ये पृथ्वी को साधे हुए हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के कोप से हुई अति वृष्टि से ब्रज की रक्षा करने के लिए पर्वत का ही सहारा लिया और गिरधारी कहलाए। विश्व के सर्वश्रेष्ठ दर्शन ग्रंथ गीता के दशम अध्याय में अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए उन्होंने अपने को स्थावरों में हिमालय और शिखरों में मेरु कह कर पर्वतराज हिमालय की महानता और पवित्रता रेखांकित की है। देवाधिदेव महादेव का निवास ही वहां परम पवित्र कैलास पर है। पृथ्वी हरिद्वार तक ही मानी गई है। इसके ऊपर देवभूमि मान्य है। इस नगर को हरि का द्वार नामित किया गया है। महाकवि कालिदास ने अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज कहकर इसकी महत्ता बताई है।

संप्रति विकास के नाम पर इन पर्वत शिखरों के वक्ष विदीर्ण किए जा रहे हैं। हर पर्यटन एवं धर्मस्थल तक मोटर से पहुंच जाने हेतु सड़कें बन रही हैं। हेलीकाप्टरों की गड़गड़ाहट, मोटरों का धुआं, पालीथिन का कचरा, पेड़ों की कटान, पन बजली परियोजनाओं को संचालित करने हेतु नदियों की धाराएं मोड़ने के दुरूह तथा प्रकृति विरोधी कार्य चरम पर हैं। तीव्र गति से पक्के निर्माण हो रहे हैं। समाजशास्त्रियों, पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों की आवाज नजरअंदाज की जा रही है।

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