वाराणसी। काशी में गंगातट पर माता शीतला साक्षात विराजमान हैं। चैत्र सुदी चतुर्थी तिथि (22 अप्रैल) को माता के होने वाले शृंगार पर रात में 2:30 बजे विराट आरती और पूरी रात संगीत की अमृतवर्षा होगी। मान्यता है कि इस विराट आरती में भगवान विष्णु भी शामिल होकर माता के दर्शन करते हैं। इस दिन मां पीले रंग की धोती धारण करती हैं।
दशाश्वमेध घाट पर स्थित शीतला माता मंदिर के शृंगार व पूजन अर्चन 16 पीढि़यों से लिंगिया परिवार करता आ रहा है। शीतलाष्टमी, देव दीपावली आदि पर्वों पर भारी भीड़ होती है। मंदिर के महंत पं. शिव प्रसाद पांडेय लिंगिया 51 सालों से मां की विराट आरती कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि स्कंद पुराण में इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन है। मां की आरती के समय भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठकर पूरब से पश्चिम की ओर जाते हैं। इसी समय घाट पर रुककर मां की आरती में शामिल होते हैं। इसलिए इसको विराट आरती के रूप में जाना जाता है।
उन्होंने बताया कि 1815 से लिंगिया परिवार के पास इस विराट आरती के होने के प्रमाण है। मगर इसके काशी के आनंद कानन वन के रूप में होने से पहले से माना जाता है।
महंत जी ने बताया कि भक्तों के निवेदन पर करीब 1908 में इस आरती का समय बदलकर 12 बजे से शुरू हुई। मगर खंडित हो गया। फिर पहले के समय पर शुरू हुई। तब से दोबारा कभी नहीं बदली गई।
त्रेता युग में पुत्रों संग राजा दशरथ ने की थी पूजा
पं. शिव प्रसाद पांडेय ने बताया कि त्रेता युग में राजा दशरथ रानियों और पुत्रों को लेकर अयोध्या से काशी आए थे। तब उनके राज्य में चेचक का प्रकोप फैला था। राजा दशरथ ने सपरिवार माता की पूजा की थी, तब इसके प्रकोप से उनको मुक्ति मिली थी।
52 जिलों से आती है बधावा यात्रा माता शीतला के शृंगार महोत्सव के पहले दिन आसपास जिलों से बधावा यात्रा आती है। पहले 52 जिलों से बधावा यात्रा आती थी। मगर अब आसपास जिलों से ही बधावा यात्रा आती है, शाम से देर रात तक आती है। भक्त माता को विविध पकवान आदि नैवेद्य अर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
41 सालों से लगाते हैं लोक गायन से हाजिरी माता के शृंगार पर ही शीतला माता संगीत समारोह होता चला आ रहा है। पं. शिव प्रसाद पांडेय ने बताया कि माता के स्थापना काल से ही संगीत समारोह की परंपरा है। तब सात दिनों आयोजन होता था। इसमें नगरवधुएं ही गायन-वादन में भाग लेती थीं।
अनवरी बेगम, हुसैना, काशीबाई, बड़े रामदास आदि कलाकारों ने यहां हाजिरी लगाई है। फिर शास्त्रीय संगीत की शुरुआत हुई। 1984 से लोक संगीत को भी शामिल कर लिया गया। भरत शर्मा, मनोज तिवारी जैसे नामचीन भोजपुरी गायक यहां हाजिरी लगा चुके हैं।