Sunday, April 28, 2024
उत्तर-प्रदेशवाराणसी

284 भारतीय सैनिकों को मौत के घाट उतारकर कुएं में……डीएनए परीक्षण की रिपोर्ट ने खोला राज……

पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क

वाराणसी। पहले स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने किस कदर बर्बरता की, आम लोगों और सैनिकों का कत्लेआम कियाए उसकी मिसाल है अजनाला नरसंहार। पंजाब राज्य के अमृतसर के अजनाला में कुएं से निकले शहीदों के 282 नरकंकालों की सच्चाई सामने आ गई है। विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने 1857 में भी जलियांवाला बाग की तरह एक क्रूर और वीभत्स घटना को अंजाम दिया था।

दुनिया की नजरों से छिपे इस इतिहास पर से पर्दा उठना शुरू हुआ वर्ष 2014 में, जब एक कुएं से 282 नरकंकाल मिले। पहले तो यह माना गया कि ये लोग 1947 में बंटवारे के समय हुए दंगों के शिकार हुए होंगे लेकिन जब बीएचयू व बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ समेत देश.विदेश के अनेक संस्थानों के विज्ञानियों की टीम ने नरकंकालों का डीएनए शोध किया तो पता चला कि ये सभी 1857 में शहीद हुए बंगाल इन्फैंट्री के भारतीय सैनिक थे और गंगा घाटी यानी यूपीए बिहार और बंगाल के निवासी थे। विज्ञानियों की इस खोज ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गुमनाम शहीदों और अंग्रेजों की क्रूरता के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है।

ऐसे हुई सच के सामने आने की शुरुआतः पंजाब के एक स्थानीय इतिहासकार और शोधार्थी सुरिंदर कोचर को कहीं से एक पुस्तक हाथ लगी। जिसका लेखक था 1857 में अमृतसर का अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर रहा फ्रेडरिक हेनरी कूपर। उसने अपनी पुस्तक क्राइसिस इन पंजाबः फ्राम 10 मई अनटिल फॉल ऑफ दिल्ली में इस घटना का जिक्र किया था कि पंजाब ;अब पाकिस्तान में के मियां मीर में तैनात बंगाल की नेटिव इन्फैंट्री की 26वीं रेजीमेंट के 500 सैनिकों ने विद्रोह कर दियाए वे पूर्वी पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे थे। कूपर ने रावी नदी के तट पर उनमें से 218 सैनिकों की गोली मारकर हत्या कर दी। शेष 282 सैनिकों को गिरफ्तार कर अजनाला ले जाया गया। वहां 237 सैनिकों को गोली मारकर और 45 को जिंदा ही कुएं में डालकर मिट्टी और चूना डालकर कुएं को बंद कर दिया गया। चालाकीवश अंग्रेजों ने कुएं पर एक गुरुद्वारा का निर्माण करा दिया। यह पढ़ने के बाद सुरिंदर ने गुरुद्वारों में कुएं की खोज शुरू की। 2014 में कुआं मिलने के बाद पंजाब विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलाजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. जेएस सहरावत ने इस पर शोध शुरू किया। धार्मिक विधिपूर्वक गुरुद्वारे को वहां से हटाया गया।

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