दशरथ मांझी जैसा पुष्पेंद्र का प्रयास, आत्महत्याओं ने झकझोरा तो यहां को बनाया पानीदार…..
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
बांदा। बिहार के दशरथ मांझी का नाम शायद ही कोई न जानता हो। जिन्होंने एक हथौड़ा और छेनी लेकर अकेले ही पहाड़ काटकर 360 फुट लंबी और 30 फुट चौड़ी सड़क बना डाली थी। उनके इस प्रयास से गांव की ब्लाक से दूरी 55 किमी से 15 किलोमीटर हो गई थी। ऐसे ही मजबूत इरादों और प्रयास से बांदा के पुष्पेंद्र ने सूखे बुंदेलखंड को पानी.पानी कर दिया है। अब तक बुंदेलखंड में 49,800 खेत.तालाब अस्तित्व में आ चुके हैं। जिनमें 28,300 उनके अभियान का परिणाम हैं। इनसे दो लाख हेक्टेअर जमीन की सिंचाई के साथ ही 21 करोड़ घन मीटर पानी संरक्षित हो रहा है। करीब साढ़े तीन मीटर भूजल स्तर बढ़ा है। आज विश्व जल दिवस पर उनके प्रयास की सराहना के साथ ऐसे ही अभियान चलाते रहने का संकल्प लेने की जरूरत है ताकि आने वाले समय में जल संकट को टाला जा सके।
वर्ष 2006 में बुंदेलखंड में सूखे की विभीषिका ने जिले के महुआ ब्लाक के पडुुई गांव को भी चपेट में लिया था। सूखी धरती के कारण बेहाल और आर्थिक तंगी के कारण 10 किसानों के अलग.अलग दिन जान देने से पूरा प्रदेश हिल गया था। किसानों के खुदकुशी करने से मची चीत्कार ने गांव के साधारण किसान पुष्पेंद्र सिंह का मन झकझोर दिया था। उनकी कुछ अलग करने की सोच, जुनून और लगन ने सूखे से कराह रहे किसानों को पानीदार बनाने का मंत्र खोजा। पुष्पेंद्र सिंह ने अपने खेत में तीन तालाब खोदे। पहले तो लोगों का सहयोग नहीं मिला। लेकिन बारिश के बाद तीनों तालाबों में पानी भरने से उनके खेतों में फसल लहलहाई तो दूसरे किसान भी आगे बढ़े। उसी साल खेतों की सिंचाई के लिए खोदा गया उनका अपना तालाब कुछ अंतराल बाद खेत.तालाब का माडल बन गया। यहीं से उनका अपना खेत.तालाब अभियान शुरू हुआ।