23 साल बाद जिंदा हुई हत्या की फाइल, अब वकील बेटा दिलाएगा पिता को इंसाफ……
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
कानपुर। 30 वर्ष पहले हुई पिता की हत्या का केस निचली अदालत में हारने के बाद 11 साल के आशीष त्रिपाठी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह यह केस खुद लड़ सकेगा। एक नाटकीय घटनाक्रम में हाईकोर्ट की फाइलों के बीच दबा केस 23 साल बाद तारीख पर आया तो स्वजन में इंसाफ की आस जग उठी। वकील बन चुके आशीष के मुताबिक अगर फाइल दबी न होती तो शायद उन हालात में हाईकोर्ट में भी केस हार जाते। ईश्वरीय इच्छा से ही फाइल दब गई। ताकि उसके पिता के हत्यारोपियों को सजा मिल सके।
सितंबर 1991 में हुई थी हत्या
आशीष के पिता ज्ञानेंद्र त्रिपाठी एयरफोर्स में मशीन अटेंडेंट थे। पत्नी गीता त्रिपाठी, बेटों आशीष, विनीत और बेटी सोनिया के साथ चकेरी के मवईया में रहते थे। 13 सितंबर 1991 को 35 साल की आयु में नर्वल के नसड़ा गांव में ज्ञानेंद्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। ज्ञानेंद्र के भाई रवींद्र त्रिपाठी की ओर से मवईया के ही दो सगे भाइयों कमल दुबे व विमल दुबे, रोशनपुरवा के अखिलेश सिंह, नसड़ा के रामऔतार व उसका बेटा विष्णु सिंह और हमीरपुर निवासी कल्लू को आरोपित किया गया। पुलिस की जांच में भी पूरा मामला सही निकला और आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट लगी।