इस गांव में कुल्हाड़ी से पेड़ों को चोट पहुंचने पर ग्रामीण करते हैं उनका इलाज……
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
सोनभद्र। दुद्धी क्षेत्र में कनहर नदी के किनारे बसे आदिवासी बहुल गांव नगवां के लोगों के लिए जंगल और पेड़ परिवार हैं। गलती से भी किसी ने दरख्तों को चोट पहुंचाई तो टीस के गांव के हर बाशिंदे को महसूस होती है। पेड़ के जख्म पर काली मिट्टड्ढी में गोबर व औषधीय गुणों वाली जंगली घास चकवड़ का लेप बनाकर बाकायदा मरहम.पट्टड्ढी करते हैं। साथ ही जादू की झप्पी देकर अहसास दिलाते हैं कि वह भी उसके दर्द में सहभागी हैं।
आदमी और जंगल का यह अद्भुत और अनोखा रिश्ता शुरू से ही ऐसा नहीं था। करीब दो दशक पहले की बात है। कैमूर पर्वत श्रेणी की हरी.भरी चोटियों की हरीतिमा वन माफिया की लालच की भेंट चढ़ती जा रही थी। हरियाली बिखेरते पहाड़ लगभग उजाड़ से हो गए थे। इन्हें बचाने की नीयत से तत्कालीन ग्राम प्रधान स्व. ईश्वरी प्रसाद खरवार ने श्जनता.जल.जंगल समिति बनाई और एक अनूठी मुहिम शुरू की। अब पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वालों के लिए पंचायत में सजा मुकर्रर की जाने लगी। उनका सामाजिक बहिष्कार तक किया जाने लगा। साथ ही जख्मी पेड़ों का उपचार शुरू हुआ। हालांकि नवंबर, 2019 में खरवार के निधन के बाद समिति की सक्रियता में कमी आई। लेकिन कोविड महामारी के दौरान लोगों को एक बार फिर पर्यावरण संरक्षण की याद आई तो गांव के ही हरिकिशुन खरवार ने मुहिम को नए सिरे से धार दी। जनता.जल.जंगल समिति को सक्रिय किया और परिणाम यह हुआ कि नगवां गांव पर्यावरण संरक्षण के लिए नजीर बन गया है।