राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय की शिक्षिका ने मासिक धर्म को बनाया जागरूकता का हथियार, यहां पढ़ें खबर…..
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
लखनऊ। डा. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की शिक्षिका डा. अलका सिंह की पहल मासिक धर्म कोई रोग नहीं। बल्कि यह महिलाओं में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन का अंग है। इसे लेकर फैली भ्रांतियां पढ़े लिखों के साथ ही ग्रामीण महिलाओं की चिंता बढ़ाती हैं। इन भ्रांतियों को शब्दों में पिरोकर जनजन तक पहुंचाने का काम किया। डा. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की शिक्षिका डा. अलका सिंह ने ष्भाव संचार के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों एवं नारी को लेकर उठने वाले सवालों को सुलझाने का कार्य किया।
मासिक धर्म से इतर महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर केंद्रित शोधपत्र को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के केयर लिस्टेड जर्नल्स में प्रकाशित किया है और उनकेइस छोटे से प्रयास को विश्व स्तर पर नई पहचान दी। उन्होंने बताया कि कानून के विश्वविद्यालय में मिशन शक्ति समिति की सदस्य होने के नामे मैंने अपने कर्तव्य को निभाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिशन शक्ति का पुरस्कार देकर मेरा हौसला बढ़ाया है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके भटनागर, कुलसचिव अनिल कुमार मिश्र की प्रेरणा से मुझे यह पुरस्कार मिला है। उन्होंने बताया कि पिता डा. उदय भान सिंह और मां भारती सिंह ने सदैव हौसला बढ़ाया है। महिलाओं के प्रति कार्य करने की प्रेरणा और सशक्त कदम बढ़ाने में पति प्रो. आरपी सिंह को भी जाता है जो हमेशा महिला सम्मान एवं सशक्तिकरण के लिए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। बेटी आर्या सिंह की भूमिका भी बढ़ने लगी है।
तृप्ता शर्मा ने घर की रसोईं से सिखाया व्यापारः जाके पांव न फटे बेवाई, वो क्या जाने पीर पराई….। इस कहावत को कोरोना काल में चरितार्थ किया आलमबाग की तृप्ता शर्मा ने। आर्थिक तंगी को करीब से निहारने वाला ही उनके दर्द को महसूस कर सकता है। पहले आर्थिक विपन्नता की भंवर में फंसी तृप्ता शर्मा अब अपनी जैसी महिलाओं को काम सिखाकर उन्हेंं अपने पैरों पर खड़ा करने का काम कर रही हैं। घर ही चहारदीवारी से दूर होकर खुद के साथ दूसरों को काम सिखाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तृप्ता शर्मा को मिशन शक्ति पुरस्कार प्रदान किया। हिना स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं को जोड़कर व रोजगार दिला रही हैं। तृप्ता बताती हैं कि बाजार से खड़े मसाले लाकर उसे सुखाना और फिर रात में पीस कर पैकेट बनाना। सुबह बच्चों को स्कूल छोडऩा और फिर पति का टिफिन तैयार करना। बच्चों और पति के बाहर जाते ही खुद झोला उठाना और घर.घर मसाले बेचना। पुरस्कार मिलने से उत्साह बढ़ता है।