Tuesday, April 23, 2024
उत्तर-प्रदेशकानपुर

बचपन से धार्मिक रिचा रोज जाती थी मंदिर, पिता को पता नहीं कब और कैसे बन गई माही अली….

पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क

कानपुर। मतांतरण के बाद रिचा सचान से माही अली बनी घाटमपुर के बिहूपुर गांव की युवती और उनके स्वजन से शनिवार को बातचीत
हुआ। रिचा ने प्रयागराज के अपने प्रोफेसर का बचाव करते हुए इस फैसले के लिए खुद को जिम्मेदार बताया। वहीं रिचा के स्वजन अभी तक विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि जो बेटी रोज मंदिर जाती थी। वह आखिर मस्जिद कब और कैसे पहुंच गई।

एमबीए करने वाली ने पढ़े कई धर्म

रिचा ने बताया कि उसने 2015 में प्रयागराज के झूसी स्थित एक कालेज से एमबीए किया था। इसके बाद वह नौकरी के लिए जयपुर चली गई थी। रिचा का कहना है कि अनेक भगवान हैं या एक भगवान है। इस जद्दोजहद में उसने कई धर्मों को पढऩा शुरू किया। कुरान का अंग्रेजी वर्जन खरीदा और बुखारी शरीफ और हदीस की किताबें पढऩा शुरू कीं। इसके बाद इस्लाम का अनुसरण शुरू कर दिया। बकौल रिचा डेढ़ साल बाद 2017 में उसने कलमा पढ़ा और फिर तय किया कि इस्लाम धर्म कुबूल करेगी। 2018 में वह दिल्ली के एक एनजीओ में काम करने लगी। वहीं उसने जानकारी जुटाई, जिसमें पता चला कि दो सर्टिफिकेट चाहिए होंगे। जिसमें एक मुफ्ती और दूसरा एसडीएम का। इसके बाद उसने एसडीएम आफिस से मतांतरण का सर्टिफिकेट हासिल किया। फिर ओखला में इस्लामिक दवाह सेंटर चलाने वाले जहांगीर आलम से मिली।

उमर गौतम चलाते हैं सेंटर

बकौल रिचा उमर गौतम उस सेंटर को चलाते हैं। वहां एसडीएम का सर्टिफिकेट दिखाने के बाद उन्हेंं मुफ्ती का प्रमाण पत्र मिला। रिचा का कहना है। उस सर्टिफिकेट की एक कापी इस्लामी दवाह सेंटर में ही जमा करा ली गई थी। इसकी वजह से ही उमर गौतम की लिस्ट में उसका नाम आया। रिचा ने प्रयागराज के अपने प्रोफेसर का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने कभी मतांतरण के लिए प्रेरित नहीं किया। कहा कि वह मतांतरण प्रकरण में शामिल अन्य लोगों को न ही जानती हैं और न मतांतरण के लिए दूसरों को प्रेरित करती हैं। वह मुस्लिम बस्ती में भी नहीं रहती।

बचपन से धार्मिक थी रिचा

रिचा के पिता शशि कुमार ने बताया कि वह बचपन से बहुत धार्मिक थी। उमरी स्थित इंटर कालेज जाते समय रास्ते में पडऩे वाले मंदिर रोजाना जाती थी। उन्होंने बताया पिछले साल दिसंबर में रिचा तीन दिनों के लिए घर आई थी। इस दौरान भी ऐसा नहीं लगा था कि उसने धर्म परिवर्तन कर लिया है। सितंबर में चचेरे भाई की मौत पर भी वह घर आई थी और हफ्ते भर रुकी थी। कोरोना काल में आक्सीमीटर और दवाइयां भी भिजवाई थीं। 19 जून को एलआइयू के कुछ लोग घर आए थे उसके बाद जानकारी हुई। इसके बाद उन्होंने फोन पर पूछा तो रिचा ने इतना बताया कि उसने इस्लाम धर्म कुबूल कर लिया है। रिचा के चाचा राजकुमार का कहना है कि उन्हेंं भी इस बात की कोई जानकारी नहीं थी।

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