Thursday, April 25, 2024
उत्तर-प्रदेशगोरखपुर

अपनों की मौत से सदमे में हैं युवा, अगर नहीं रोये तो हो जाएंगे पागल…..

पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क

गोरखपुर। शाहपुर निवासी 25 वर्षीय युवती का व्यवहार अचानक बदल गया है। कभी बोलती है कि वह डाक्टर को मार डालेगी तो कभी कहती है उसकी मां और भाई उसे बुला रहे हैं। वह रात में उनसे बात कर रही थी। दरअसल, कोरोना संक्रमण से पहले युवती की मां और बाद में भाई की मौत हो गई। अचानक स्वजन का जाना वह स्वीकार नहीं पा रही है। तब से लेकर आज तक वह रोयी भी नहीं। अब वह अजीब व्यवहार कर रही है। स्वजन ने डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि युवती बीरीवमेंट यानी मृत्यु के कारण हुए नुकसान को स्वीकार नहीं कर पा रही है। दिक्कत अभी शुरुआती दौर में है तो काउंसलिंग कर युवती का इलाज शुरू कर दिया गया है। डाक्टर कहते हैं कि यदि यह स्थिति कुछ समय बनी रहे तो पागलपन के भी लक्षण आने लगते हैं।

स्वजन की मृत्यु स्वीकार नहीं कर पा रहे युवा

कोरोना संक्रमण के कारण सैकड़ों लोगों ने अपने स्वजन को खोया है। अचानक कई मौत कुछ लोगों के ऊपर गहरा असर डाल रही है। इनमें युवाओं की संख्या ज्यादा है। खुद को परिवार का जिम्मेदार मानते हुए युवा स्वजन की मौत पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, रोते भी नहीं लेकिन अंदर ही अंदर वह मौत को स्वीकार भी नहीं कर पाते।

बुजुर्ग कम आ रहे चपेट में

अचानक स्वजन की मौत होने पर परिवार के बुजर्गों में ज्यादा बदलाव नहीं दिखता है। डाक्टर बताते हैं कि उम्र बढऩे के साथ ही परिपक्वता आने से बुजुर्ग मौतों को स्वाभाविक रूप से लेते हैं। वह अपने अति करीबी जिसमें पत्नी या पति साथ रहने वाले बेटे या उनके बच्‍चों की मौत पर ही ज्यादा विचलित होते हैं।

यह होती है समस्या

स्वजन की मौत को लोग स्वीकार नहीं कर पातेए भगवान को दोष देने लगते हैं कि उन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों कर दिया। लगता है कि जिसकी मौत हो गई वह उनसे बात कर रहा हैए उनके पास आ रहा हैएभूख नहीं लगतीए सामाजिक दुराव बढऩे लगता हैए रात में नींद नहीं आती।

फैक्ट फाइल

छोटे बच्‍चों के व्यवहार पर किसी की मौत का असर नहीं होता भले ही उसके माता.पिता ही क्यों न हो। सात से 10 साल के बच्‍चे मौत को समझने लगते हैं। 10 साल से ज्यादा उम्र के बच्‍चे मौत पर प्रतिक्रिया देते हैं और 18 साल से ज्यादा उम्र वाले स्वजन की मृत्यु पर विचलित होते हैं। कुछ रोकर और अपना दुख दूसरों से बांटकर दर्द कम करते हैं तो कुछ शांत दिखने की कोशिश में जुट जाते हैं। ऐसे युवाओं में दिक्कत आती है।

बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में मनोचिकित्सक डा. आमिल एच खान का कहना है कि अपनी भावनाओं को दबाना नहीं चाहिए। दुख है तो रोएं यह आपकी कमजोरी नहीं बल्कि भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम है। मौत को स्वीकारें। किसी ने स्वजन को खोया है तो उससे बात कर दुख को बाहर निकालें और आगे बढऩे के लिए प्रेरित करें। मानसिक रोग विशेषज्ञ डाण् मुकर्रम हुसैन का कहना है कि कोरोना संक्रमण से अचानक मौतों को कुछ लोग स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। सबसे बुरा असर युवाओं में दिख रहा है। कोरोना के कारण मृतक परिवार के पास कोई जा नहीं रहा इसलिए भी दुख नहीं बंट रहा। युवा मानसिक अवसाद में आ रहे हैं। इलाज से जल्द दिक्कत दूर हो जाती है।

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