कोरोना से मौत पर घरवालों ने फेरा मुंह तो पुलिस बनी मददगार, साहित्यकार समेत तीन को कंधा देकर पहुंचाया श्मशान….
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
कानपुर। क्या कभी किसी ने सोचा था कि इंसान इतना निष्ठुर हो सकता है कि अपने माता.पिता और सगे संबंधियों से नाता तोड़ ले। इंसानियत रखने वालों का जवाब शायद न ही होगा लेकिन काेरोना संक्रमण काल में ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं। कोरोना संक्रमण से जान गंवाने वाले कुछ लोगों को चार कंधे भी नसीब नहीं हो रहे हैं। शहर में वरिष्ठ साहित्यकार समेत तीन ऐसे ही मामले सामने आए हैं। कोविड संक्रमण से मौत होने के बाद घर वालों ने मुंह फेर लिया तो मददगार बनी पुलिस ने कांधा देकर श्मशान तक पहुंचाया और अंतिम संस्कार कराया।
किदवईनगर के साइट नंबर एक निवासी वरिष्ठ साहित्यकार 90 वर्षीय अंबिका प्रसाद शुक्ल का साहित्य जगत में बड़ा नाम था। उनका जन्म उन्नाव के ऊगू गांव में हुआ था। परिवार में एक मात्र विधवा बेटी व नातिन है। वह चार साल से बिस्तर पर ही थे। गुरुवार को उनका निधन होने पर कोरोना के डर से पड़ोसियों ने दूरी बना ली। उनकी बेटी ने कवयित्री डॉ. सुषमा सिंह से मदद मांगी। पुलिस को सूचना देकर अंतिम संस्कार कराने के लिए अनुरोध किया। इस पर किदवई नगर थाने से दारोगा सूर्यबली यादव पहुंचे। उन्होंने बर्रा स्थित स्वर्गाश्रम में बात करके अंतिम संस्कार की रस्म पूरी कराई। बाद में सूचना पाकर शहर के कुछ और साहित्यकार भी पहुंच गए।
इसी तरह बर्रा थानाक्षेत्र के बी ब्लॉक विश्व बैंक कॉलोनी निवासी राजेश जायसवाल की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई थी। कोरोना के डर से पड़ोसी तो दूर स्वजन भी आगे नहीं आए। इससे घंटों शव घर पर ही रखा रहा। बर्रा चौकी प्रभारी सतपाल सिंह ने हेल्पलाइन नंबर की मदद से नगर निगम के वाहन से शव श्मशान घाट पहुंचाया। जहां कोविड प्रोटोकाल के तहत उनका अंतिम संस्कार हुआ। तीसरी घटना ईडब्ल्यूएस बर्रा की है। जहां विनय कुमार की संक्रमण के चलते गुरुवार को मौत हो गई थी। शव घर पर रखा था, अंतिम संस्कार करने के लिए कोई नहीं था। घर पर विनय की पत्नी और दो छोटे बच्चे थे। चौकी प्रभारी जनता नगर ने पड़ोसियों से मदद के लिए कहा, मगर कोई सामने नहीं आया। इसके बाद पुलिस ने ही नगर निगम से वाहन मंगवाकर अपनी देखरेख में अंतिम संस्कार की रस्म पूरी की।