बसपा का दूसरे राज्यों में खाता खोलने से पहले जनाधार की चुनौती, आकाश आनंद के लिए आसान नहीं दलितों में फिर ‘हाथी’ की पैठ बढ़ाना
लखनऊ। चार दशक पुरानी बहुजन समाज पार्टी की भविष्य में कमान संभालने वाले पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आंनद के लिए फिलहाल देशभर में ‘हाथी’ की सेहत सुधारने की राह आसान नहीं है।
राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से 10 सांसदों के अलावा किसी भी दूसरे राज्य में न पार्टी का कोई सांसद जीता और न ही उल्लेखनीय वोट मिले।
पार्टी ने 26 राज्यों में चुनाव जरूर लड़ा था लेकिन उसे 50 प्रतिशत राज्यों में एक प्रतिशत भी वोट नहीं मिले। सात राज्यों में दो प्रतिशत से कम जबकि चार राज्यों में तीन-चार प्रतिशत वोट ही पार्टी को हासिल हुए थे।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में केवल इतने लोगों ने दबाया हाथी का बटन
पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में 4.52 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 19.42 प्रतिशत मतदाताओं ने ही हाथी का बटन दबाया था।
दरअसल, बसपा प्रमुख मायावती ने रविवार को अपने युवा भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित करने के साथ ही उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड को छोड़ उसे देशभर में ‘नीला परचम’ लहराने का दायित्व भी सौंपा।
ऐसे में अब आकाश के सामने देश के कम से कम 24 राज्यों में पार्टी के प्रदर्शन को सुधारने की बड़ी चुनौती है। वर्ष 1984 में बनी बसपा के इतिहास में पार्टी के अब तक चार राज्यों में ही सांसद रहे हैं।
सन् 1989 पंजाब राज्य की सिर्फ एक ही जीत जीती थी
उत्तर प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों के अलावा बसपा ने पहले-पहल वर्ष 1989 में उस पंजाब राज्य की भी एक सीट पर जीत दर्ज कराई थी जहां से पार्टी के संस्थापक कांशीराम रहे हैं। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश और 1998 में हरियाणा में भी पार्टी ने पहली बार खाता खोला था।
इन चार राज्यों को छोड़ पार्टी का अन्य किसी भी राज्य से अब तक एक भी सांसद नहीं रहा है। लोकसभा में पार्टी की सबसे बेहतर स्थिति डेढ़ दशक पहले तब थी जब उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर मायावती के नेतृत्व में बसपा की सरकार बनी थी।
वर्ष 2009 के चुनाव में पार्टी के यूपी से 20 और मध्य प्रदेश से एक सांसद चुने गए थे और उसे अब तक के सर्वाधिक 6.17 प्रतिशत वोट मिले थे।