Tuesday, May 7, 2024
बिहार

यहां का ये अस्पताल बांट रहा मौत, काल के गाल में समा गए 848 मासूम, इस रिपोर्ट को पढ़ सिहर उठेंगे आप……

गया। इसे गरीबी की मार कह लें या जागरूकता का अभाव, मगर किसी एक अस्पताल में दस महीनों में 848 बच्चों की मौत हो जाए तो बड़ा प्रश्न है। मगध प्रमंडल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में इस वर्ष जनवरी से अक्टूबर के बीच ये मौतें हुई हैं। हर महीने करीब 85 बच्चे काल के गाल में समा गए।

यहां 5,314 बच्चों को इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। इनमें मौत का आंकड़ा करीब 15 प्रतिशत रहा। आए दिन एक.दो मौत होती है। दैनिक जागरण ने सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी, ताकि पता चल सके कि यह संख्या क्या है। उपाधीक्षक सह लोक सूचना अधिकारी डॉण् एनके पासवान ने जो जानकारी दी, वह चौंकाने वाली है।

इतनी मौतें तो एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम एइएस से भी नहीं हुईं, जो काफी खतरनाक बीमारी है। जब मौत के शिकार हुए बच्चों की पारिवारिक पृष्ठभूमि की पड़ताल के क्रम में कुछ लोगों से बात की गई तो उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब मिली। वे मौत पर केवल आंसू भर बहा सकते हैं। हर महीने इतनी बड़ी संख्या में मौतें होती चली गईं, पर न कोई समीक्षा, न ही योजनाओं की पड़ताल की गई।

आंगनबाड़ी केंद्र से मिलने वाले पोषाहार से लेकर गरीबों के कल्याण की तमाम योजनाओं के बावजूद यह हाल! मरने वालों में अधिसंख्य अनुसूचित जाति के थे। आखिर उनकी मौत का कारण क्या रहा/इस संबंध में अस्पताल अधीक्षक से लेकर विशेषज्ञों से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वायरल फीवर, खून में संक्रमण के साथ अन्य बीमारियां कारण हैं। बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए पौष्टिक आहार बहुत जरूरी है। लेकिन गरीबी के कारण उन्हें पर्याप्त मात्रा में मिल नहीं पाता है। वे विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होने लगते हैं।

केस स्टडी

औरंगाबाद के अरविंद पासवान की पत्नी नीतू देवी अपने एक वर्षीय बीमार बेटे को लेकर सात सितंबर को अस्पताल पहुंची थीं। उसे शिशु रोग विभाग में भर्ती किया गया। बच्चे की हालत खराब थी और उनकी आर्थिक स्थिति काफी दयनीय। इससे पता चल रहा था कि मां को गर्भवस्था के दौरान पोषाहार नहीं मिला। बच्चे के जन्म के बाद उसे उचित पोषाहार और उपचार नहीं मिला। कुछ ही देर में मृत्यु हो गई।

गया के बाराचट्टी की सुगिया देवी पति शंभू मांझी के साथ चार माह की पुत्री के उपचार को चार सितंबर को अस्पताल पहुंचीं। डॉक्टरों ने बताया कि सांस लेने में परेशानी हो रही थी। बच्ची काफी कमजोर थी। अगले ही दिन वह चल बसी। गया के ही फतेहपुर के नरेश यादव की पत्नी प्रतिमा कुमारी आठ वर्षीय पुत्री को 14 अक्टूबर को लेकर पहुंचीं। डॉक्टरों ने बताया कि उसके खून में संक्रमण फैल चुका था, काफी देर हो चुकी थी। उसकी भी मृत्यु दूसरे ही दिन हो गई।

औरंगाबाद के फरहर आलम भी पांच वर्षीय पुत्र को लेकर पहुंचे। बच्चे को हृदय रोग था। सात अक्टूबर को उसका निधन हो गया। अत्यंत पिछड़े इलाकों में बसे लोगों में अभी भी झाड़.फूंक का चलन है। इसके प्रति कोई जागरूकता नहीं है। बच्चे की तबीयत खराब होते ही ओझा.गुणी के पास चले जाते हैं। बीमारी बढ़ती है, तो अस्पताल लेकर जाते हैं। तब तक देर हो चुकी होती है। इसके अलावा गांवों में घूम रहे झोलाछाप भी इलाज कर रहे हैं।

विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से बच्चों की हालत बहुत खराब हो जाने पर लोग यहां पहुंचते हैं। यहां आने के बाद चिकित्सकों द्वारा बच्चों को बचाने का पूरा प्रयास किया जाता है, लेकिन बीमारी काफी बढ़ जाने के कारण मौतें भी होती हैं। बीमार होते ही बच्चों को अस्पताल पहुंचा दिया जाए, तो इतनी संख्या में मौतें नहीं हो सकती हैं।

डॉ. विनोद शंकर सिंह, अधीक्षक अनुग्रह नारायण मेडिकल कालेज एवं अस्पताल, गया

बच्चों की मौत का बड़ा कारण कुपोषण भी है। गरीबी के कारण उन्हें जो पोषण मिलना चाहिए, नहीं मिल पाता है और वे बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। डॉ. एनके पासवान, उपधीक्षक अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, गया

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