Thursday, May 2, 2024
उत्तर-प्रदेशवाराणसी

उत्तर प्रदेश के इस जिल में अकेले कुत्ते लगा रहे सालाना 37 करोड़ से ज्यादा की चपत, जानें कैसे…..

पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क

वाराणसी। गांव से शहर तक कुत्तों का कहर शारीरिक व मानसिक पीड़ा तो दे ही रहा, जनता को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से आर्थिक चोट भी पहुंचा रहा। गलियों.सड़कों में डेरा जमाए कब किस राहगीर को दौड़ाएं और काट खाएं, पता नहीं।

सिर्फ पिछले साल के सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो 30 हजार से अधिक लोगों पर कुत्तों ने जबड़ा आजमाया। इनमें लगभग सभी ने एहतियातन रेबीज से बचाव का टीका लगवाने के लिए अस्पतालों की दौड़ लगाई। उन्हें एंटी रेबीज वैक्सीन लगाने में 37 करोड़ से अधिक रुपये का राजस्व खर्च हो गया।

हां, तमाम लोग निजी अस्पतालों में भी एआरवी लगवाने पहुंचे होंगे। इसे भी शामिल कर लें तो यह आंकड़ा 40 करोड़ सालाना से ऊपर जाएगा। वास्तव में सरकारी अस्पतालों समेत चिकित्सा इकाइयों में अप्रैल 2022 से मार्च 203 तक सिर्फ सरकारी अस्पतालों में 93 हजार 211 डोज एंटी रेबीज वैक्सीन लगाई गई।

इसमें हर एक पीड़ित को तीन से पांच तक एआरवी की डोज लगाई गई। सरकारी अस्पताल में टीके निश्शुल्क लगाए जाते हैं लेकिन बाजार में इसकी कीमत का आकलन करें तो एक डोज लगभग 400 रुपये तक आती है। सरकारी अस्पतालों में इसकी आपूर्ति की दर भले कम हो लेकिन रख.रखाव का खर्च जोड़ कर कीमत वहां तक आ जाती है।

एक से तीन माह में दिखने लगता असर

रेबीज वायरस से संक्रमित कुत्ते के काटने पर संक्रमण व्यक्ति के शरीर में पहुंचा जाता है। इसका लक्षण सामान्यतया एक से तीन माह में दिखता है। प्रतिरोधी क्षमता अनुसार थोड़ा समय भले ले, लेकिन जीवन पर बन आती है।

ऐसे में कुत्ते के काटने पर डाक्टर एहतियातन एंटी रेबीज वैक्सीन जरूर लगवाने की सलाह देते हैं। जिस कुत्ते ने काटा वह संक्रमित है या नहीं, पता न होने से आमतौर पर अस्पतालों में टीकाकरण के लिए लंबी कतार लग रही है। बंदर व बिल्ली के काटने पर भी टीकाकरण किया जाता है।

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