तपती धूप में फिर पैदल आने को मजबूर, पिछले एक सप्ताह में पांच हजार से अधिक मजदूर लौटे अपने गांव…..
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
उदयपुर। आदिवासी जिले के डूंगरपुर के एक लाख से अधिक लोग गुजरात तथा महाराष्ट्र में मजदूरी करते हैं। पिछले साल लगे लॉकडाउन में 60 फीसदी से अधिक मजदूरों को फिर से काम नहीं मिल पाया। कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के चलते गुजरात तथा महाराष्ट्र में लॉकडाउन जैसे हालात की वजह से एक बार फिर उन्हें अपने घरों पर लौटना पड़ रहा है। रतनपुर बार्डर पर प्रवेश को लेकर बढ़ाई सख्ती तथा आरटी.पीसीआर रिपोर्ट के अभाव में मजदूर तपती दोपहरी में पैदल ही सड़क नापने को मजबूर हो रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में पांच हजार से अधिक मजदूरों ने डूंगरपुर जिले में कच्चे रास्तों के जरिए प्रवेश किया और अपने घरों पर लौटे।
रतनपुर बार्डर पर उन्हीं लोगों को राजस्थान की सीमा में प्रवेश दिया जा रहा है। जिनकी तीन दिन पहले कराई गई आरटी.पीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव आई हो और वह वैक्सीनेशन करा चुके हो। ऐसे में जिन मजदूरों ने अपनी आरटी.पीसीआर रिपोर्ट नहीं कराई और वैक्सीनेशन नहीं करायाए वह उलटे पांव लौटने को मजबूर हैं। काम नहीं मिलने तथा भूखे मरने की नौबत के चलते वह अपने घरों के लिए तपती धूप में पैदल चलने को मजबूर होने लगे हैं। इसके लिए वह कच्चे रास्तों को अपना रहे हैं। जहां उन्हें रोकने वाला कोई नहीं।
बार्डर से पहले पैदल रास्ता की ओर रूख कर लेते
डूंगरपुर के आसपुर क्षेत्र के नरेंद्र खराड़ी का कहना है कि मंगलवार को वह अपने परिवार के साथ गुजरात से घर लौटा है। सूरत में काम करता था लेकिन वहां लॉकडाउन की जैसी स्थिति के चलते उसके मालिक ने उसे घर जाने के लिए कह दिया। वहां रूकने के लिए पैसा चाहिए जो खत्म होने लगा। उसके जैसे सैकड़ों लोग अपने घरों के लिए लौट रहे थे। वाहनों के जरिए वह निकले लेकिन रतनपुर बार्डर पर कड़ी चैकिंग की सूचना पर आधा किलोमीटर पहले ही वह उतर गए। वहां से कच्चे रास्तों के जरिए पैदल ही यात्रा की और डूंगरपुर जिले में पहुंचे। उसने बताया कि सूरत, अहमदाबाद तथा गुजरात के कई शहरों में जिले के हजारों मजदूर काम करते हैं। पिछले एक सप्ताह में सर्वाधिक मजदूर घर लौटे। जिनकी संख्या पांच हजार से अधिक ही होगी। सागवाड़ा निवासी रमेश खांट भी दो दिन पहले गुजरात से परिवार सहित लौटा। जिसने बताया कि वहां के उद्योग.धंधों पर काम नहीं मिल पा रहा। ऐसे में घर लौटना मजबूरी थी। गुजरात में खर्चा उठाने तथा आरटी.पीसीआर रिपोर्ट के लिए भटकने की जगह घर लौटना ज्यादा आसान लगा।