बसपा से फिर मिले ब्राह्मण तो बदल जाएंगे सियासी समीकरण, जानें. क्या है मायावती की रणनीति……
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
लखनऊ। पिछले चुनावी दृश्य लहर से बदलते रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में जातीय दांव से बाजी जीतते रहे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का भरोसा इसी सूत्र पर अब भी टिका है। निस्संदेह जाति की गोटें बिठाने में भारतीय जनता पार्टी के भी रणनीतिकार पीछे नहीं रहेए लेकिन बसपा व सपा का बहुत सधा गणित है। अपने.अपने जातिगत वोट बैंक के साथ मुस्लिम मत में हिस्सेदारी बराबरी के लिए है तो ब्राह्मणों के बोनस वोट से यह समीकरण बदल देना चाहते हैं। दलित.मुस्लिम.ब्राह्मण गठजोड़ से 2007 में सत्ता हासिल कर चुकीं बसपा सुप्रीमो मायावती खास तौर पर सोशल इंजीनियरिंग का दांव पूरी ताकत से 2022 के विधानसभा चुनाव में भी चलना चाहती हैं।
दरअसल वर्ष 2012 में सत्ता गंवाने के बाद से अब तक हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बसपा का जनाधार खिसकता ही रहा। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी शून्य पर सिमट गई थी। भाजपा के बढ़ते प्रभाव से पार्टी की घटती ताकत का ही नतीजा रहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती ने अपनी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी तक से गठबंधन करने में गुरेज नहीं किया। गठबंधन से पार्टी को दस लोकसभा सीटें तो मिल गईं। लेकिन पार्टी की स्थिति सुधरती नहीं दिखी। ऐसे में मायावती ने गठबंधन तोड़ अकेले ही विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया।