Saturday, April 27, 2024
आगराउत्तर-प्रदेश

इंग्लैंड की महारानी ने आगरा के नौकर को दिया था दिल, प्रेमी की बनाई चिकन करी खाकर हो जाती थीं मगन……

आगरा। अधूरे प्रेम की ऐसी कहानी जिसकी चर्चा कभी पूरी नहीं हुई। नौकर के प्रेम में पड़ी एक महारानी की कहानी। महारानी भी कोई मामूली नहीं बल्कि विक्टोरिया। उनकी कहानी इतिहास के अंधेरे में खो गई। सारे संभव सबूत मिटा दिए गए। सालों बाद कोलकाता निवासी लेखिका श्रावणी बसु ने इस प्रेम कहानी को ढूंढ़ निकाला। महारानी विक्टोरिया का वह प्रेमी कोई और नहीं आगरा का अब्दुल करीम था। वही अब्दुल 20 अप्रैल 1909 में 46 वर्ष की उम्र में निधन के बाद पचकुइयां के कब्रिस्तान में सो रहा है। इतिहासकार और पत्रकार श्रावणी बसु 1990 के दौर में भारतीय खान.पान पर रिसर्च कर रही थीं। इंग्लैंड के आइल आफ वाइट में बने आस्बोर्न होम में श्रावणी को एक तस्वीर दिखाई दी

लाल और सुनहरे रंग की पेंटिंग में एक भारतीय चेहरा। यहीं श्रावणी अटक गईं। शोध करने पर पता चला यह कोई और नहीं अब्दुल करीम है। भारत से महारानी की सेवा में आया वह व्यक्ति जिससे महारानी विक्टोरिया को प्रेम हो गया। महारानी ने अपनी डायरी में अब्दुल से पहली मुलाकात के बारे में लिखा। वह उम्र में छोटा था, उसका रंग कमोबेश हल्का था। उसके पिता आगरा में डॉक्टर थे। महारानी ने उन्हें इंडियन क्लर्क टू द क्वीन का पद भी दिया था। श्रावणी ने अपने शोध पर एक पुस्तक विक्टोरिया एंड अब्दुल लिखी जो 2010 में प्रकाशित हुई थी।

प्रेम कहानी पर बन चुकी है फिल्म

महारानी विक्टोरिया और अब्दुल करीम के रिश्ते पर भारतीय लेखिका श्रावणी बसु की किताब पर 2017 में हालीवुड की फिल्म विक्टोरिया एंड अब्दुल भी बनी है। इस फिल्म की कुछ शूटिंग आगरा में भी हुई थी। फिल्म में हालीवुड अदाकारा जूडी बेंच ने महारानी विक्टोरिया की भूमिका निभाई थी और करीम का किरदार भारतीय अभिनेता अली फजल ने निभाया था।

ऐसे इंग्लैंड पहुंचे थे करीम

श्रावणी ने लिखा 1887 में महारानी विक्टोरिया ने इंग्लैंड में एक समारोह के लिए भारतीय नौकरों को बुलाया था। दो युवाओं को पानी के जहाज से इंग्लैंड भेजा गया। जिनमें से एक अब्दुल करीम थे। करीम के पिता आगरा जेल में हकीम थे। वे मूल रूप से झांसी के ललितपुर के रहने वाले थे। अब्दुल करीम छह महीने के भीतर ही महारानी के खास हो गए थे। महारानी करीम की बनाई चिकन करी को खूब पसंद करती थीं।

आगरा में बनवाया था लाज

महारानी को पता था कि उनके निधन के बाद करीम को परेशान किया जाएगा। इसलिए उन्होंने भारत के वायसराय से कहकर आगरा में करीम के लिए लाज बनवाया। 1901 में महारानी के निधन के बाद करीम को भारत वापस भेज दिया गया था। भारत आने के बाद करीम अपने परिवार के साथ इसी लाज में रहे। निधन के बाद करीम को पचकुइयां स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया। आज भी वहां अब्दुल करीम का मकबरा है, जहां उर्स होता है।

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