Saturday, April 27, 2024
नई दिल्ली

आगामी विधानसभा चुनावों में ड्राइविंग सीट पर होगा जातीय समीकरण, जानें भाजपा और विपक्षी दलों की कैसी है तैयारी……

पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली। राजनीति में हमेशा से हावी रहा जातीय समीकरण इस बार ज्यादा मुखर दिखेगा। एक तरफ जहां मुख्यत, विपक्षी दलों की ओर से जातिगत जनगणना और संख्या के हिसाब से आरक्षण की मांग तेज होने लगी है। वहीं सत्ताधारी दल भाजपा की ओर से ज्यादा हक और सम्मान के साथ ही नारों के बजाय अधिकार और क्रियान्वयन पर जोर होगा। यह तय मानकर चला जा रहा है कि विकास बैक सीट पर होगा और जातीय समीकरण ड्राइविंग सीट पर।

नारों के बजाय अधिकार और क्रियान्वयन पर जोर देगी भाजपा

चुनावी राजनीति में जाति अहम हैए इसे राजनीतिक धुरंधर भी मानने लगे हैं। लेकिन चुनावी मुद्दों में विकास के विषयों को शामिल करने का चलन रहा है। पर माना जा रहा है कि इस बार चुनावी मुद्दों में भी जाति का समावेश हो सकता है। लगभग उसी तर्ज पर जैसा 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में हुआ था। तब भाजपा के खिलाफ पूरा चुनाव आरक्षण को केंद्र में रखकर लड़ा गया था। सूत्रों की मानें तो इस बार भाजपा ने उसी लिहाज से अपना अखाड़ा तैयार किया है। गौरतलब है कि आरएसएस सामान्यत किसी मुद्दे पर तत्काल अपनी प्रतिक्रिया नहीं देता है। लेकिन इस बार संघ की ओर से बयान जारी कर आरक्षण की वकालत की गई है। राज्यों को ओबीसी जातियों के चयन का अधिकार वापस देने के लिए केंद्र ने ही पहल की और सभी विपक्षी दलों को साथ खड़ा होना पड़ा।

जातिगत जनगणना और संख्या के हिसाब से आरक्षण की मांग कर रहे विपक्षी दल

समाजवादी पार्टी, राजद, यहां तक कि कांग्रेस ने भी आरक्षण की सीमा 50 फीसद से बढ़ाने की मांग कर बढ़त बनाने की कोशिश की है। जातिगत जनगणना की मांग भी कुछ इसी उद्देश्य से की जा रही है। बताया जाता है कि सभी दलों की ओर से इन्हीं कुछ मुद्दों को केंद्र में रखने की तैयारी है। वहीं केंद्र सरकार में 27 ओबीसी, डेढ़ दर्जन अनुसूचित जाति और लगभग एक दर्जन आदिवासी मंत्री बनाने के बाद भाजपा ने जन आशीर्वाद रैली कर जनता तक यह संदेश पहुंचाने में देर नहीं की कि वह नारों तक सीमित नहीं है। बल्कि उसे जमीन पर उतारने में जुट गई है।

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