यह कश्मीरियत है…..न हिंदू न मुस्लिम, पुलवामा में कश्मीरी पंडित की अंत्येष्टि में इन लोगों ने दिया साथ…..
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
श्रीनगर। कश्मीरियत की तारीफ यूं ही विश्वभर में नहीं होती है। मजहब से ऊपर उठकर हर सुख.दुख में साथ देने की मिसाल कश्मीर के हर गली.कूचे में सुनने.देखने को मिल जाएगी। हिंदू हो या मुस्लिम, भाईचारे की अनेक कहानियां यहां लिखी जा चुकी हैं।
आतंकवाद के कई हमलों के बावजूद कश्मीरियत की यह भावना अपने पथ से डिगी नहीं है। गत वीरवार को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में कश्मीरियत की यही भावना जीवंत दिखी। यहां आतंक के दौर में भी पलायन न करने वाले एक कश्मीरी पंडित का निधन हो गया था। मुस्लिम पड़ोसियों ने मजहबी भाईचारे का परिचय देते हुए न सिर्फ अर्थी को कंधा दिया। बल्कि अंत्येष्टि में भी स्वजन का पूरा सहयोग किया। यह कश्मीरियत है। जिसमें न कोई हिंदू है और न मुस्लिम।
आतंकियों का गढ़ कहे जाने वाले पुलवामा जिले के सिरनु गांव में 85 वर्षीय मक्खन लान का निधन बुधवार की देर शाम हो गया था। वह बीते कुछ दिनों से बीमार थे। मक्खन लाल ने आतंकियों की धमकियों के बावजूद अपना पैतृक गांव नहीं छोड़ा था। वह बीएसएनएल में कर्मचारी थे। उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने भी आतंक के उस दौर में उन्हें गांव से नहीं जाने दिया था। सभी उनके साथ खड़े हो गए थे। बुधवार को उनके निधन के बाद पड़ोसी उनके घर पहुंच गए। उन्होंने उनके स्वजन को सांत्वना दी और अंतिम रस्मों का पूरा प्रबंध किया। वीरवार को उनका अंतिम संस्कार किया गया।
गांव में दो से तीन परिवार ही हैं पंडितों के निसार उल हक ने कहा कि सिरनू में कश्मीरी पंडितों के दो से तीन ही परिवार रहते हैं। मक्खन लाल के परिवार के दो.तीन सदस्य ही यहां हैं। मक्खन लाल बहुत मिलनसार थे। सिर्फ हमारे गांव में ही नहीं, बल्कि आसपास के गांवों में भी लोग उन्हें जानते थे। हम सभी ने उनके स्वजन से प्राप्त जानकारी के आधार पर उनकी अंत्येष्टि के लिए सारा प्रबंध किया। उनकी अंतिम यात्रा में पूरे गांव के लोग शरीक हुए।
रिश्तेदार बोले.लगा ही नहीं कि कोई हिंदू है या मुस्लिम मक्खन लाल के रिश्तेदार चुन्नी लाल ने फोन पर बताया कि आज कोरोना का डर सभी को है। इसके बावजूद सिरनू में मक्खन लाल की अंतिम यात्रा में पड़ोसी के मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल रहे। उन्होंने अंत्येष्टि का पूरा बंदोबस्त किया। लगता ही नहीं था कि यहां कोई हिंदू या मुस्लिम है। ऐसा लग रहा था कि जैसे सभी एक ही हों और यही कश्मीरियत है जो आज फिर हमें जिंदा नजर आई।