कोरोना महामारी के दौर में शराब जैसे मुद्दे पर सिर्फ आर्थिक पक्ष को देखना कितना जायज…..
पूर्वांचल पोस्ट न्यूज नेटवर्क
पिछले करीब सवा साल से कोरोना महामारी से पूरा देश जूझ रहा है। वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं को बहाल करने में राज्य सरकारों को सीमित संसाधनों और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में शराब की बिक्री राज्यों के लिए राजस्व का महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्यों द्वारा महामारी के दौरान लॉकडाउन की घोषणा होते ही शराब की दुकानों पर खरीदारों की लंबी कतार आम बात हो गई है।
पिछले दिनों तेलंगाना में लॉकडाउन की घोषणा होने के महज चार घंटे में रिकॉर्ड 125 करोड़ रुपये की शराब की बिक्री दर्ज की गई। यही स्थिति कमोबेश अधिकांश राज्यों में देखी गई है। तमाम राज्य सरकारें भी शराब की बिक्री को सहज बनाने के लिए कई छूट दे रही हैं। छत्तीसगढ़ सरकार के बाद अब दिल्ली सरकार ने भी राज्य में शराब की ऑनलाइन बिक्री और होम डिलीवरी की अनुमति दे दी है। जबकि राजस्थान और कर्नाटक समेत अन्य कई राज्यों ने भी इसकी बिक्री के लिए कई रियायतें दी हैं।
महामारी के दौरान आर्थिक संकट से जुझ रही राज्य सरकारें राजस्व प्राप्ति के लिए कई हथकंडे अपना रही हैं। जबकि शराबबंदी कानून लागू करने वाले राज्य इससे प्राप्त होने वाले राजस्व के नुकसान से पहले से ही र्आिथक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। पिछले साल अक्टूबर में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 25 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में शराब की कीमतों में महज साल भर में 120 फीसद तक वृद्धि हुई है। महत्वपूर्ण है कि पेट्रोलियम और शराब उत्पाद अभी भी जीएसटी प्रणाली के अंतर्गत नहीं आते हैं। यही कारण है कि राज्य सरकार के पास राजस्व का बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम और शराब उत्पादों पर लगने वाले बिक्री कर और उत्पाद शुल्क से प्राप्त होता है।