राज्यपाल पद से इस्तीफा, राष्ट्रपति को सौंपी चिट्ठी……..
चंडीगढ़। Banwari Lal Purohit resigned from Governor Post: पंजाब के राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने अपने राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने आज ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंपा है।
निजी कारणों से बनवारी लाल ने दिया इस्तीफा
जानकारी के मुताबिक, बनवारी लाल ने निजी कारणों से पद से इस्तीफा दिया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दिए गए इस्तीफे पत्र में बनवारी लाल ने लिखा है कि अपने व्यक्तिगत कारणों और कुछ अन्य प्रतिबद्धताओं के कारण, मैं पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक के पद से अपना इस्तीफा देता हूं। कृपया इसे स्वीकार करें।
पंजाब सीएम मान से विवादों के बीच बनवारी लाल ने दिया इस्तीफा
पुरोहित न केवल पंजाब के राज्यपाल हैं बल्कि यूटी चंडीगढ़ के प्रशासक भी हैं। 31 अगस्त 2021 को पंजाब के राज्यपाल का पद संभालने से पूर्व वह असम और तामिलनाड़ू के भी राज्यपाल रह चुके हैं। पंजाब में अपने अढ़ाई साल के कार्यकाल में उन्होंने कई विवादों को जन्म दिया और मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ उनका ऐसा टकराव रहा कि दोनों को अपने अपने अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
असम के भी राज्यपाल रह चुके बनवारी लाल
इससे पहले वह असम के भी राज्यपाल रह चुके हैं। 78 वर्षीय बनवारी लाल पुरोहित दो बार कांग्रेस एक बार भाजपा की टिकट से सांसद भी बन चुके हैँ। वह 1977 में राजनीति में आए थे और 1978 में विदर्भ आंदोलन समिति के टिकट पर नागपुर से विधानसभा का चुनाव जीते।
दक्षिण नागपुर से बने थे कांग्रेस के विधायक
1980 में दक्षिण नागपुर से कांग्रेस के विाायक बने। 1984 व 1989 में कांग्रेस के टिकट पर नागपुर लोकसभा क्षेत्र से चुने गए। राममंदिर मुद्दे पर उन्होंने 1991 में कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें 1996 में टिकट दिया और वह तीसरी बार सांसद बने।
बनवारी लाल का रहा है विवादों से नाता
पंजाब में विधानसभा सत्र को बुलाने, विश्वविद्यालयों के वीसी की नियुक्ति और विधानसभा में पारित बिलों को रोकने के मामले में उनका मुख्यमंत्री भगवंत मान से काफी टकराव रहा। हालात यहां तक पहुंच गए कि सरकार को राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था मामला
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से जब यह कहा कि वह चुने हुए नुमाइंदे नहीं हैं और सरकार चलाना चुने हुए नुमाइंदों का काम है तब कहीं जाकर यह विवाद शांत हुआ और विधानसभा का सत्र बुलाया गया।